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कविता

हिंसा

चंद्रेश्वर


अर्जुन की निगाह थी टिकी
मछली की आँख पर
था जिसे भेदना उसे
दिखाना था करतब
पुरुषार्थ का

चाहे जैसा भी हो
लक्ष्य-भेद
हिंसा तो होगी ही !

 


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